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Shloka: | अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम्। यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः॥ |
Bhagavad Gita Reference: | 1.45 |
Mahabharata Reference: | 6023045 |
Hindi Trnaslation: | अहो ! शोक की बात है कि हम लोग बुद्धियुक्त होकर भी बडा भारी पाप करने का निश्चय कर बैठे हैं, जो कि इस राज्य सुख के लाभ से अपने कुटुम्ब और स्वजनों का नाश करने के लिये तैयार हो गये हैं ॥४५॥ |
Sandhi-split Shloka: | अहो बत वयम् महत्पापं कर्तुं व्यवसिताः यत् राज्यसुखलोभेन स्वजन हन्तुम् उद्यताः। |
Anvayakrama: | अहो बत वयम् महत्पापं कर्तुं व्यवसिताः यत् राज्यसुखलोभेन स्वजन हन्तुम् उद्यताः॥ |
Bhagavad Gita Tagged Shloka: | अहो/ABS बत/ABS महत्पापं/NP कर्तुं/KKS व्यवसिताः/KN वयम्/SN यत्/AVK राज्यसुखलोभेन/NP हन्तुं/KKS स्वजनम्/NP उद्यताः/KN ॥/PUNC 1.45/PUNC ॥/PUNC Tagging scheme used |